Mera Ghar-II / मेरा घर-II / My House-II
नमस्कार मित्रो,
थोड़ी सी व्यस्तता के कारण चिट्ठे से अलविदा लिया था, लेकिन अभी मेरी कविता संग्रह "मेरे मन की" के प्रकाशित होने के उपरान्त लौट आया हू और अपनी यात्रा की शुरुवात वही से करता हू जहाँ से इसे छोड़ कर गया था|
पोस्ट क्रमांक - ६ -:- मेरा घर से आगे ...
और आंगन के अंदर दो पेड़ थे। सबसे पहले अमरूद था और दूसरा आँवले का था। और, मवेशियों के लिए एक बड़ा खपरैल था, उस समय दो गायों और तीन भैंस थी जो उसी मे रहा करती थी| और एक चार कमरे की दालान थी, उनमें से तीन स्टोर रूम के रूप में इस्तेमाल किया गया था और एक का इस्तेमाल भूसे, उपले और लकड़ी के लिए रखने के लिये करते थे। और दालान के पीछे एक छोटी सी नदी थी, जो गर्मियो मे तो सुखी रहती थी, लेकिन बारिश मे पानी इकट्ठा हो जाता था| और उस पानी का उपयोग लोग अपने पशुओ को नहलाने, उनको पानी पिलाने, बर्तन-कपड़े इत्यादी धोने के काम मे लाते थे| घर के सामने एक गेस्ट रूम के नाम पर चारो तरफ से खुला हुआ खपरैल था जो एक बड़ी सी नीम के पेड़ के नीचे था| गर्मियो के दोपहर तो हम सभी लोग उसी खपरैल मे बिताते थे| और जो सुख और आनंद की अनुभूती उस खपरैल मे बैठकर मिलती थी, उसकी खोज वर्षो से कर रहा हूँ, लेकिन वैसा आनंद नही आया|
आज के लिये बस इतना ही, फिर मिलूँगा और इस यात्रा को आगे बढाऊँगा|
धन्यवाद, शुभ संध्या |
ऋषभ शुक्ला
मेरे मन की / Mere Man Kee
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