"" Mere Man Kee: Murkh Radheshyam / मूर्ख राधेश्याम (Foolish Radheshyam)

मंगलवार, 24 मार्च 2020

Murkh Radheshyam / मूर्ख राधेश्याम (Foolish Radheshyam)

Murkh Radheshyam / मूर्ख राधेश्याम (Foolish Radheshyam)

Murkh Radheshyam / मूर्ख राधेश्याम (Foolish Radheshyam)



"अरे ओ राधे! अभी उठा की नहीं?" - पुष्पा जी कर्कश स्वर में बोली|

राधे दौड़ता हुआ आया| एक १२ वर्षीय लड़का जोर-जोर से हाफते हुआ चला आ रहा था|
"जी माताजी|" सांसो को रोकते हुए बोला| 
"मै तो बाबूजी के लिए दातुन तोड़ रहा था, नीम के पेड़ से|" राधेश्याम ने सफाई देनी चाही लेकिन पुष्पा जी ने डांटकर चुप करा दिया| और बोली - "चल यह पानी की बाल्टी गुसलखाने तक पंहुचा दे, बाबूजी को नहाना है, और फिर ज्योती दीदी और निलेश भैया के रूम में उनको उठाकर चाय दे देना, और हाँ चाय लेकर जाना तभी उन्हें उठाना, नहीं तो उनका सर दर्द करने लगेगा|"

राधे चाय लेकर ऊपर गया, तो जोर से आवाज आई, पुष्पा जी दौड़कर ऊपर की और गयी तो देखा| राधेश्याम कोने में खड़ा था मौन साधे, और आँखों में पानी उठने लगा था, ऐसा लग रहा था की बस अभी उसके बांध को तोड़कर बह उठेंगी| 

पुष्पा जी ने कमरे में पहुचते ही स्थिती को समझ लिया जैसे की, यह रोज की सामान्य घटना हो| उन्होंने निलेश को डांटा - "तुम्हारे हाँथ बहुत चलने लगे है, उस पर हाथ मत उठाया करो, तुम तो जानते हो वह मूर्ख है|"

और कमरे से बाहर जाने लगी, तो राधेश्याम उनके पीछे हो लिया| बाहर निकलकर पुष्पा जी ने कहा जब मैंने तुझे बोला था की चाय लेकर जाना फिर उन्हें जगाना, तो तुमने ऐसा क्यों नहीं किया|
तो पहले तो पुष्पा जी चुप हो गयी, फिर टालने के अंदाज में बोली अच्छा जा थोड़ी सी चाय बची है तपेले में, गर्म करके पीले, और सारे बर्तन धुल देना|"
और राधेश्याम के चेहरा चहकने लगा, जैसे कुछ हुआ ही न हो|
राधेश्याम मनोज के सगे भाई का लड़का था, राधे के माता-पिता इस दुनिया से तभी चल बसे, जब राधे ५ साल का था| तो मनोज राधे को लेकर बनारस स्थित घर में ले के चले आये| 
मनोज जी बिजली विभाग में है, और उनकी आमदनी काफी अच्छी है बड़ा बेटा निलेश जो १२वी की परीक्षा तो पास कर चुका है लेकिन अभी मोबाइल का बड़ा स्टोर खोलना चाहता है, छोटी बेटी ज्योती ने इसी वर्ष १०वी की परीक्षा दी है| 
सभी घर के सदस्य उसे नौकर के अतिरिक्त कुछ नहीं समझते है, लेकिन मनोज जी उसमे और निलेश में कोई फर्क नहीं समझते है| लेकिन उनकी नौकरी ही ऐसी है की सुबह नौ बजे तक निकल जाते है, और रात में ११ बजे आते है| 
सभी लोग उसे हर छोटी बात पर डाँटते रहते है, लेकिन वो पहले तो नाराज होता, उसका मन करता की सबको छोड़कर चला जाए, लेकिन थोड़ी देर बाद प्रसन्न चित्त हो जाता, और काम में जुट जाता| उसकी दिनचर्या थी की सुबह ४ बजे उठकर सभी काम निपटाले और ६ बजे पुष्पा जी को उठाये| और रात में सबके सो जाए के बाद भी १-२ बजे तक छतपर जगता रहता| मनोज जी का प्यार ही था जो राधे को रोके हुए था इस घर में| और एक दिन मनोज जी का भी हाथ उठ गया उसपर, बिना खाए मनोज जी भी ऑफिस चले गए, उन्हें पछतावा बहूत हो रहा था| इधर राधे की तो जैसे दुनिया ही उजड़ गयी हो, रात को देरतक आसमान में निहारता रहा, न जाने नींद क्यों नहीं आ रही थी उसे| 
और सुबह मनोज जी उठे तो दातुन की जगह उन्हें दातुन नहीं मिली तो बोले - "राधे! फिर कुछ देर रुककर बोले राधे!" 
तब उन्होंने पुष्पा जी से पुछा - "अरे राधे कहाँ गया? मेरे लिए दातुन भी नहीं रखा|"
घर में सभी उसे ही याद कर रहे थे, कोई चाय के लिए, कोई दातुन के लिए, कोई पानी के लिए और कोई उसकी हँसी के लिए| मनोज जी समझ गए की, वो अब आजाद हो गया है, अब वापस नहीं आयेगा| 
उनका स्वार्थ तो यह कह रहा था की वो वापिस आ जाये, उसे कोई कुछ नहीं कहेगा| लेकिन दिल कह रहा था, की वो जहाँ भी रहे खुश रहे, लेकिन वापिस यहाँ ना आये| सभी दुहाई दे रहे थे, राधे आ जाये तो मै उसे कुछ नहीं कहूँगा, चाय भी मै उसे दूंगा, लेकिन क्या फायदा, वो तो जा चूका था|
हर सुबह वही याद आता सभी को, आज इतने वर्ष हो गए इस घटना को लेकिन अभी भी लोग उसे भूले नहीं है|
मनोज जी और यह घर तो आज भी उसके मुस्कुराते हुए चेहरे की तलाश कर रहे है| और अभी घर में यह आवाज नहीं गुजती - "मूर्ख राधेश्याम|"


@ ऋषभ शुक्ला


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