Murkh Radheshyam / मूर्ख राधेश्याम (Foolish Radheshyam) |
Murkh Radheshyam / मूर्ख राधेश्याम (Foolish Radheshyam)
"अरे मूर्ख! ये क्या कर रहा है? ये सभी चीजे इन भीखमंगो के लिए नहीं है, अभी ढेर सारे मेहमान आने बाकी है|" - राधेश्याम के चाचा वंशी ने अपनी त्योरियाँ चढाते हुए कहा|
"लेकिन अभी तो रात के १२ बज चुके है| और आने वाले सभी मेहमान, गाँव वाले और यहाँ तक की घर वाले भी खा चुके है तो अब बचा कौन?" - राधेश्याम ने बीच में बात काटते हुए कहा|
और वह मुसहरो को जो पंक्ति में बैठे थे, सभी को खाने परोसता चला गया| लेकिन वंशी चाचा को ये बात बड़ी ही नागवार गुज़री कि कैसे कोई उनकी बात को नजर अंदाज कर सकता है, बस हाथ से पानी का लोटा जमीन पर पटक राधेश्याम की और दौड़ पड़े, और बोले - "लाओ मै दे देता हूँ, तुम वैसे भी बहूत थक गए होगे और बात ख़त्म होने से पहले ही उन्होंने उसके हाथ टोकरी छीन ली| और राधेश्याम वहां से चला गया तो वंशी चाचा बडबडाये - "क्या हुआ?...मिल गया ना, अब जाओ यहाँ से .......इस दानवीर कर्ण का बस चले तो सब कुछ लुटा दे|"
और फिर उनके ना जाने पर टोकरी से पूड़ी-कचौड़ी निकाली और ऐसे उनकी तरफ फेंका की कुछ लुढ़कते हुए जमीन पर| और फिर वहां से वे सारा सामान लेकर भंडार घर में रख दिया|
और वे सभी भी चले गए|
और राधेश्याम काफी थक जाने की वजह से वहीं सो गया|
अभी रात के १२:३० बजे होंगे सभी मेहमान बरामदे में बैठे थे और जिनको जाना था वे सभी खाना खा के जा चुके थे| फिर सभी बैठकर आपस में बात करने लगे, और फिर वंशी चाचा ने भी तुरंत यह बात छेड़ दिया और सारी बात को एक ओर से अंत तक सुनाते चले गए, और बीच-बीच में वे "मूर्ख" शब्द का संबोधन करते जा रहे थे, जो कदाचित राधेश्याम के लिए था| और बात ख़त्म होने पर सभी ने उनकी बुद्धीमता को सराहा, और वही राधेश्याम खाट पर पड़े-पड़े सभी बात सुन रहा था| और फिर सभी लोग धीरे-धीरे सोने चले गए|
अगली सुबह सभी देर से जगे और दैनिक क्रिया करने के उपरांत सभी काम पर लग गए| कुछ लोग मेहमानों को विदा कर रहे थे तो कुछ लोग झाड़ू लगा रहे थे|
राधे श्याम अभी भी सो रहा था, कल रात उसने कुछ खाया भी ना था, और बिना कुछ बिछाए एक चादर ओढ़कर, लकड़ी के बने तख्त पर लेट गया था| सूरज की रोशनी उसके मुंह पर जा रही थी, इसीलिये उसने अपना मुंह भी ढक लिया था| तभी एक जोरदार हाथ उसकी पीठ पर पड़ा, राधेश्याम ने अंगडाई लेते हुए उठकर देखा तो उसके चाचा वंशी खड़े थे| और कहा - "अरे सोते ही रहोगे या कुछ काम भी करोगे, चलो बर्तन खाली करने है, और उन्हें धुलकर टेंट वाले के पास भेजने है नहीं तो देर हो गयी तो एक दिन का किराया और जोड़ देंगे|"
राधेश्याम अन्दर गया तो देखा, वो सभी सामान ख़राब हुए पड़े थे जिसे कल वंशी चाचा ने उन गरीबो को नहीं देने दिया था| वो बहूत गुस्सा था पर अफसोस हो रहा था, अपने चाचा की सोच और समझ पर...|
जैसे ही वो नीचे झुका उसकी आँखों से निकली आंसू की दो बूंदे उस बर्तन के अन्दर गीर गयी|
उसका दिल तो जैसे बैठ गया| उसे अपने चाचा और अन्य सम्बंधीयो की सोच पर तरस आ रहा था|
वह बरबस ही बोल उठा ...........मूर्ख राधेश्याम|
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