Maha Shivratri / महाशिवरात्री |
Maha Shivratri / महाशिवरात्री
आज सुबह – सुबह दीनानाथ पाण्डेय जी, जो माधोपुर ग्राम
के सबसे धार्मिक व्यक्ती है, हमेशा की तरह, हाथ में पूजा का सामान लेकर
मंत्रोच्चार करते हुए तेजी से मंदिर की तरफ चले जा रहे थे| जैसे की उन्हें मंदिर और भगवान के आलावा कुछ भी दिखाई नहीं पड़ रहा है| मंदिर से लगभग २० कदम की दूरी पर
कबीरा मैले कपडे में बैठा हुआ था| कबीरा माधोपुर गाँव का निवासी नहीं था, कुछ बर्ष
जब आस-पास के कई गाँवों में सुखा पड़ रहा था, तभी यह इस गाँव में आया और इसी शिव मंदिर के पास आकर रहने लगा| खाने का कोई ठिकाना नही होता था, बस जब मन में आता रामायण की चौपाईया गाता रहता था| उसने पाण्डेय जी को आते हुए देख रखा था| जैसे ही
पाण्डेय जी उसके नजदीक आये, उसने पाण्डेय जी का रास्ता रोकते हुए कहा – “पंडित कुछ
खाने को दो ना|”
पाण्डेय जी ने झिझकारते हुए कहा – मेरे पास खाने के
लिए कुछ नहीं है| वैसे भी आज महाशिवरात्री है, मेरे पास दूध के आलावा, कुछ भी नहीं
है|”
तो कबीरा ने कहा - "पाण्डेय जी! दूध ही दे दीजिये| भूखे को भोजन कराना तो पुण्य का कार्य होता है, और मुझे तो दो दिनों से रोटी नहीं नसीब हुआ है|"
पाण्डेय जी ने चिढ़ते हुए कहा - "अरे मुर्ख, जो वस्तु भगवान के नाम पर लिया जाता है उसे सिर्फ भगवान को ही अर्पण करना होता है| अगर उसे खाने के लिए किसी को दिया जाये तो खाने और खिलाने वाले दोनों पाप के भागी होते है| और महाशिवरात्री के दिन के दिन भगवान शंकर का दूध से अभिषेक किया जाता है, तो मनुष्य पुण्य का भागी बनता है|"
और अपनी बात बात को खत्म करते हुए अपने पैरो से कबीरा के पैरो तो धकेलते हुए आगे की ओर बढ़ गए|
कबीरा पुनः रामायण की चौपाईयाँ गाता हुआ मंदिर की ओर चल पड़ा -:
पाण्डेय जी ने मंदिर में पहुँचकर शिवलिंग का दूध से अभिषेक किया, और कबीरा ने मंदिर के पीछे खड़े होकर नाली से आते हुए दूध से अपनी क्षुधा शांत की| और फिर मुस्कुराते हुए गाने लगा :-
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